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Iran Israel War: ईरान पर अमेरिका का बड़ा हमला

President Trump in The Situation Room
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ईरान बनाम इज़राइल युद्ध में अमेरिका के हस्तक्षेप करने से मिडिल ईस्ट में अस्थिरता बढ़ सकती है। अमेरिका के द्वारा अपने अत्याधुनिक बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स का इस्तेमाल ईरान के ऊपर किया गया है। जानकारी के अनुसार अमेरिका द्वारा 7 बी-2 स्टेल्थ बॉम्बर्स का इस्तेमाल ईरान के तीन प्रमुख न्यूक्लियर ठिकानों को नष्ट करने के लिए किया गया है। अमेरिका द्वारा ईरान के तीन प्रमुख न्यूक्लियर ठिकानों — फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान को निशाना बनाया गया था। इसमें सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण फोर्डो न्यूक्लियर एनरिचमेंट प्लांट है क्योंकि यह ज़मीन से नीचे काफी गहराई पर बना हुआ है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा इसे न्यूक्लियर खतरे को खत्म करने की कार्रवाई बताया गया है। वहीं इज़राइल के पीएम नेतन्याहू ने राष्ट्रपति ट्रंप की ईरान के ऊपर कार्रवाई की खूब सराहना की। ईरान द्वारा दावा किया गया है कि उनका नुकसान सीमित हुआ है क्योंकि उन्होंने हमले से पहले सभी संवेदनशील उपकरण पहले ही हटा दिए थे। अब पूरे विश्व की नजर ईरान पर है कि ईरान इसका जवाब कैसे देगा — क्या वह अमेरिका से सीधे तौर पर बदला लेगा या फिर इज़राइल पर हमला करेगा? अगर यह युद्ध बढ़ता है तो क्या इसका असर वैश्विक स्तर पर होगा? आर्थिक स्तर पर होगा? क्या स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ में स्थिति बिगड़ सकती है? और अगर स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ में अस्थिरता बढ़ती है तो इसका सीधे तौर पर असर तेल की कीमतों पर देखने को मिलेगा। सवाल यह है — इज़राइल के कहने पर अमेरिका ने ईरान पर हमला करके क्या अपने आप को इस युद्ध में लंबे समय के लिए उलझा लिया है?

 

अमेरिका-ईरान युद्ध:

दुनिया को यह तो पता था कि अमेरिका आज नहीं तो कल ईरान पर हमला करेगा, लेकिन इस बात का अंदाज़ा किसी को नहीं था कि इतनी जल्दी कर देगा। राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा पहले कुछ समय मांगा गया था हमला करने से पहले। माना जा रहा था कि किसी मीटिंग के जरिए इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा, लेकिन अमेरिका द्वारा अचानक हमला करके पूरी दुनिया को चौंका दिया गया है। राष्ट्रपति ट्रंप के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से कुछ तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें साफ़ तौर पर दिख रहा है कि कैसे सिचुएशन रूम में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, अमेरिकी जनरल्स, मार्को रूबियो और जेडी वैंस हमले पर नज़र बनाए हुए हैं।

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका ने ईरान पर एक बड़ा और सटीक सैन्य हमला किया है। यह हमला अचानक नहीं था—इसकी तैयारी महीनों से हो रही थी और इसकी योजना अमेरिका की मिलिट्री स्ट्रैटेजी का अद्भुत उदाहरण बन गई है।

 

हमले की शुरुआत:

जानकारी के अनुसार अमेरिका से बी-2 बॉम्बर्स रवाना हुए और ईरान की नज़र में आए बिना इन्होंने ईरान की तीन प्रमुख न्यूक्लियर फैसिलिटी को तबाह किया और वापस सुरक्षित ईरान के एयरस्पेस से बाहर आ गए। यह कोई साधारण विमान नहीं बल्कि अमेरिकी एयरफोर्स के अत्याधुनिक बॉम्बर्स हैं। इन बॉम्बर्स की विशेषता है कि ये ‘स्टेल्थ’ तकनीक पर आधारित हैं। इनका राडार क्रॉस सेक्शन इतना कम है कि राडार में ये न के बराबर दिखते हैं।

 

बी-2 बॉम्बर्स क्यों हैं इतने ख़ास:

ये बॉम्बर्स दुनिया की सबसे बेहतरीन टेक्नोलॉजी का एक उदाहरण होने के साथ-साथ बहुत ही महंगे हैं। बी-2 बॉम्बर की अनुमानित लागत 2 बिलियन के करीब है और यह एकमात्र ऐसा बॉम्बर है जो बंकर बस्टर बम ले जाने की क्षमता रखता है। अभी ईरान में न्यूक्लियर फैसिलिटी को नष्ट करने के लिए अमेरिका ने GBU-57A/B MOP का इस्तेमाल किया था। एक GBU-57 बंकर बस्टर बम का वजन 12,000 किलोग्राम से ज़्यादा होता है।

 

टारगेट: ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटीज़:

यूएस का मुख्य उद्देश्य किसी भी सिविलियन को बिना नुकसान पहुँचाए ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को खत्म करना था। इस हमले में उन्होंने GBU-57 बंकर बस्टर बम का उपयोग किया — यह बम ज़मीन के अंदर लगभग 180 फीट गहराई में जाकर टारगेट को नष्ट करने की क्षमता रखता है। अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण टारगेट फोर्डो का न्यूक्लियर प्लांट था, और हो सकता है वे इसमें एक हद तक कामयाब भी हो गए हों। फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट करना इज़राइल के लिए नामुमकिन सा था क्योंकि उनके पास इतनी गहराई में जाकर किसी साइट को नष्ट करने के लिए कोई भी बंकर बस्टर बम नहीं है, क्योंकि फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट ज़मीन के ऊपर नहीं बल्कि एक पहाड़ के अंदर करीब 270 फीट नीचे स्थित है। अमेरिका का दावा है कि यह साइट पूरी तरह नष्ट हो गई है, जबकि ईरान का कहना है कि केवल एंट्रेंस तक ही बम पहुंचे और उन्होंने पहले ही महत्वपूर्ण संसाधनों को हटा लिया था। लेकिन अमेरिका के इस अचानक किए गए हमले ने क्या ईरान को महत्वपूर्ण संसाधनों को हटाने का मौका दिया होगा? अगर अमेरिका के दावे के अनुसार वहां नुकसान हुआ है तो क्या न्यूक्लियर रेडिएशन फैलने का खतरा बढ़ सकता है?

 

क्या यह हमला सफल रहा?

सफलता की पुष्टि दो पक्षों की अलग-अलग बातों से कठिन हो जाती है। अमेरिका का कहना है कि उन्होंने साइट को पूरी तरह तबाह कर दिया है; अब यह निर्भर करता है वहां की स्थिति पर। क्योंकि अमेरिका द्वारा बहुत सारे बमों को एक साथ गिराया गया है, अगर वे प्रिसिशन के साथ एक के बाद एक बम एक ही स्थान पर गिरे हैं तो ही साइट पूरी तरह नष्ट हो सकती है—और यह तभी मुमकिन है जब ‘प्रिसिशन’ यानी सटीकता बेहद उच्च स्तर की रही हो। जबकि ईरान का दावा है कि उन्हें कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।

 

बेंजामिन नेतन्याहू की प्रतिक्रिया:

इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका के ईरान पर इस हमले का खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने कहा, “प्रेसिडेंट ट्रंप का यह फैसला इतिहास बदलने वाला है। अमेरिका ने आज वह कर दिखाया जो दुनिया का कोई और देश नहीं कर सकता।” क्योंकि इतनी दूरी से एयरक्राफ्ट की पूरी फ्लीट ले जाकर ईरान पर हमला करके सभी एयरक्राफ्ट सुरक्षित बेस पर पहुँच जाना, वो भी बिना किसी राडार में आए—यह केवल अमेरिका ही कर सकता है। नेतन्याहू का यह बयान यह भी दर्शाता है कि इज़राइल और अमेरिका की साझेदारी अब और भी मजबूत हो गई है।

 

ट्रंप का संदेश और “पीस थ्रू स्ट्रेंथ” की नीति:

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हमले के बाद सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि यह हमला ईरान के न्यूक्लियर खतरे को खत्म करने के लिए ज़रूरी था। उन्होंने कहा कि अमेरिका “शांति के लिए शक्ति” में विश्वास रखता है—एक नीति जो कहती है कि अगर शांति स्थापित करनी है तो वह शक्ति के साथ ही संभव है।

 

ईरान की प्रतिक्रिया और संभावित युद्ध:

ईरान की ओर से भी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। उन्होंने कहा है कि अब वे अमेरिका को निशाना बनाएंगे, खासकर उसके मिलिट्री बेस और नौसेना को। लेकिन ऐसा होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि अमेरिका एक NATO सदस्य है और NATO का सबसे ताकतवर सदस्य भी। यदि ईरान सीधे अमेरिका को निशाना बनाता है, तो सभी NATO सदस्य उसके ऊपर हमला कर सकते हैं। हाँ, यह हो सकता है कि यमन और लेबनान में मौजूद ईरानी समर्थक प्रॉक्सी ग्रुप्स को सक्रिय किया जा सकता है, जिससे यह युद्ध और अधिक फैल सकता है, जिसका असर भारत और चीन जैसे देशों पर पड़ सकता है।

 

स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़: अगला युद्धक्षेत्र?

अब पूरे विश्व की नज़र स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ पर है—यह यूनाइटेड अरब अमीरात और ईरान के पास एक ऐसा संकीर्ण समुद्री मार्ग है जहाँ से वैश्विक तेल का लगभग 20% ट्रांसपोर्ट होता है। ईरान के पास इतनी नौसेना शक्ति है कि वह इस रास्ते को बंद कर सकता है, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति पर बड़ा असर पड़ेगा—खासतौर पर ईस्ट एशियन देशों पर क्योंकि इन देशों की कच्चे तेल की आपूर्ति यहीं से होती है।

अमेरिका का यह हमला तकनीकी रूप से शानदार कहा जा सकता है। जिस प्रकार उन्होंने इतनी लंबी दूरी तक बिना किसी नुकसान के जाकर टारगेट को हिट किया, वह आधुनिक सैन्य तकनीक का बेहतरीन उदाहरण है। परंतु, इसका भू-राजनीतिक प्रभाव बहुत गहरा हो सकता है। अब सवाल यह है कि क्या ईरान प्रतिक्रिया देगा? क्या यह संघर्ष तीसरे विश्व युद्ध की आहट बन सकता है? या फिर अमेरिका और इज़राइल की यह कार्यवाही वाकई “शांति लाने” की शुरुआत है? जो भी हो, दुनिया की निगाहें अब पश्चिम एशिया पर टिकी हुई हैं।

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