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Ahmedabad Plane Crash: डिज़ाइन खामी, मेंटेनेंस विफलता या सरकारी लापरवाही?

ahmedabad plane crash
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अहमदाबाद से लंदन जा रही Air India की Flight AI-171 टेकऑफ करने के बाद 2 मिनट के अंदर crash हो गई। यह भयानक हादसा 12 जून 2025 को हुआ, इस विमान हादसे में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई, जिसमें यात्रियों के साथ-साथ वह doctors भी शामिल थे जो उस बिल्डिंग में मौजूद थे, जिस पर यह विमान गिरा। यह केवल एक तकनीकी हादसा नहीं है बल्कि भारतीय विमानन व्यवस्था की लापरवाही, सरकारी एजेंसियों की नाकामी और निजीकरण के खोखले वादों का भी नतीजा है।

यह हादसा टेकऑफ के बाद मात्र कुछ सेकंड में हुआ जब बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान नियंत्रण खो बैठा और अहमदाबाद के मेघानी इलाके में स्थित एक डॉक्टर्स हॉस्टल पर गिर गया। इस विमान में कुल 242 यात्री मौजूद थे
जिसमें 53 ब्रिटिश नागरिक भी शामिल थे। हादसे से ठीक पहले विमान के पायलट ने ‘मेडे’कॉल दी थी जो विमान में गंभीर तकनीकी समस्या की पुष्टि करती है।

इस विमान को उड़ाने वाले दोनों पायलट बेहद अनुभवी थे। कैप्टन सुमित सवरवाल के पास 8200 घंटों से ज्यादा का उड़ान अनुभव था, वहीं को-पायलट क्लाइव कुंदर के पास भी 1100 घंटे का अनुभव था। ऐसे में मानवीय चूक की
संभावना लगभग न के बराबर थी। इसका सीधा संकेत है कि यह हादसा तकनीकी खामी या फिर डिजाइन की बड़ी गलती का नतीजा था।

इस दुर्घटना के बाद फिर से बोइंग 787 ड्रीमलाइनर की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। गौरतलब है कि 2023 में बोइंग कंपनी के वरिष्ठ इंजीनियर और व्हिसल ब्लोअर सैम सालेहपुर ने अमेरिकी सीनेट के सामने बयान दिया था कि
ड्रीमलाइनर विमान के असेंबली में जानबूझकर शॉर्टकट लिए गए, जिसके कारण फ्यूजलेज (विमान का ढांचा) में खतरनाक गैप रह गए हैं। उन्होंने बताया था कि ये गैप ऊँचाई पर उड़ान के दौरान स्ट्रक्चरल फेलियर का कारण बन सकते हैं।
सालेहपुर की इन चेतावनियों को बोइंग ने नजरअंदाज कर दिया और इस विमान को समय से पहले बाजार में उतार दिया गया। भारत सरकार, डीजीसीए और एयर इंडिया प्रबंधन ने इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया और संभव है कि उसी का नतीजा इस भीषण हादसे के रूप में सामने आया है।

जब टाटा ग्रुप ने 2022 में एयर इंडिया का अधिग्रहण किया था तब उम्मीद की जा रही थी कि अब मेंटेनेंस बेहतर होगा, बेड़ा आधुनिक बनेगा और सुरक्षा मानकों पर कोई समझौता नहीं होगा। लेकिन जो आंकड़े सामने आए हैं वे इसके उलट हैं। एयर इंडिया के कई विमान अभी भी पुराने हैं, बोइंग 777 जैसी पुरानी फ्लाइट्स अभी भी उड़ान भर रही हैं। विस्तारा और एयर इंडिया के फ्लीट का एकीकरण अधूरा है, जिससे मेंटेनेंस और संचालन दोनों में अव्यवस्था बनी हुई है।

हाल के समय में एयर इंडिया के विमानों में हाइड्रोलिक सिस्टम फेलियर, केबिन प्रेशर की समस्या और उड़ान के दौरान तकनीकी खामियों की घटनाएं बढ़ी हैं। उड़ानें देरी से चल रही हैं या बार-बार रद्द हो रही हैं।
सवाल है क्या टाटा ग्रुप एयर इंडिया जैसी बड़ी एयरलाइन के संचालन और रखरखाव के लिए पूरी तरह सक्षम नहीं था, या फिर सरकारी निगरानी प्रणाली ही नाकाम रही?

इस हादसे के बाद भारत सरकार और डीजीसीए पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। गृह मंत्री अमित शाह का यह बयान कि “दुर्घटनाओं को रोका नहीं जा सकता” बेहद असंवेदनशील प्रतीत होता है।

यदि दुर्घटनाएं टाली नहीं जा सकतीं तो फिर इतने बड़े बजट का नागरिक उड्डयन मंत्रालय, DGCA और विमान सुरक्षा प्राधिकरण क्यों हैं? क्या DGCA ने बोइंग ड्रीमलाइनर के खिलाफ आई अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्ट्स का संज्ञान लिया था? क्या टाटा ग्रुप को एयर इंडिया के विमानों के नवीनीकरण के लिए बाध्य किया गया? क्यों इस दुर्घटना के बाद ब्लैक बॉक्स निकालने में 24 घंटे की देरी हुई? यह सभी सवाल जवाब मांगते हैं लेकिन सरकार और एजेंसियां चुप हैं।

इस दुर्घटना में सिर्फ मशीनें नहीं टूटीं, कई जिंदगियां भी उजड़ गईं। इस हादसे के एकमात्र बचे यात्री Ramesh Vishwas Kumar हैं, जिनका जीवित बचना किसी चमत्कार से कम नहीं। भूमि पटेल नामक युवती इस फ्लाइट से जाने वाली थी लेकिन ट्रैफिक के कारण लेट होने से उसकी जान बच गई। वहीं उस डॉक्टर्स हॉस्टल के 56 डॉक्टर, जो लंच कर रहे थे, मौके पर ही मारे गए। एक पूरा गुजराती परिवार – पति-पत्नी, दो जुड़वां बच्चे – इस हादसे में खत्म हो गया। क्या इन परिवारों को केवल बीमा राशि से संतुष्ट कर दिया जाएगा या इस सिस्टम फेलियर की सच्ची जवाबदेही तय होगी?

मीडिया की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए हैं। हादसे के 12 घंटे बाद तक किसी बड़े चैनल ने इस हादसे की तकनीकी वजहों पर चर्चा नहीं की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घटना स्थल पहुंचे और फोटोग्राफरों को अपने विशेष पोज़ देने के मौके मिले। नागरिक उड्डयन मंत्री ने घटनास्थल से इंस्टाग्राम रील बनाई। बीजेपी आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर तरह-तरह की षड्यंत्र थ्योरीज़ फैलानी शुरू कर दीं – कोई तुर्की टेक्नोलॉजी पर शक कर रहा था तो कोई पायलट पर। ऐसे में असली सवाल पीछे छूट गए।

दुनिया में बोइंग 787 ड्रीमलाइनर को लेकर हड़कंप मचा है। अमेरिकी सीनेट में बोइंग के CEO से सख्त पूछताछ हो चुकी है। उनकी नीतियों की वजह से कंपनी की साख पर बट्टा लगा है। लेकिन भारत में अभी तक न तो DGCA ने ड्रीमलाइनर पर कोई आधिकारिक बयान दिया है और न ही नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इसकी जिम्मेदारी ली है। क्या भारत के यात्रियों की सुरक्षा का महत्व अमेरिका या यूरोप के यात्रियों से कम है?

इस हादसे ने कई अहम सवाल खड़े किए हैं। क्या बोइंग 787 ड्रीमलाइनर में वाकई डिज़ाइन खामी थी? क्या टाटा ग्रुप एयर इंडिया के रखरखाव मानकों को पूरा कर पाया? क्यों ब्लैक बॉक्स रिकवरी में 24 घंटे की देरी हुई? क्या इस हादसे की जांच रिपोर्ट जनता के सामने लाई जाएगी?

सच तो यह है कि यह हादसा केवल एक तकनीकी फेलियर नहीं बल्कि भारतीय एविएशन व्यवस्था की पूरी श्रृंखला की विफलता है। बोइंग के लालच, टाटा की तैयारी की कमी, DGCA की निष्क्रियता और सरकार की जवाबदेही से बचने की कोशिश — यह सभी सोचने का विषय है।

यह हादसा हमें सिखाता है कि जब तक नागरिक सवाल नहीं पूछेंगे, तब तक ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेंगी। हमें इस घटना की जवाबदेही तय करनी होगी — चाहे वह बोइंग हो, टाटा ग्रुप हो या भारत सरकार। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये हादसा भारत के विमानन इतिहास का सबसे दुखद अध्याय बनकर रह जाएगा।

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