Operation Rising Lion – गुरुवार देर रात से शुरू हुए ईरान-इजराइल युद्ध मानो विराम होने का नाम ही नहीं ले रहा। दोनों देशों के मध्य युद्ध शुरू हुए 60 घंटे से अधिक हो गए। पर अभी भी मिडिल ईस्ट के आसमानों में मिसाइलों का बम्बार लगा है। इजराइल के दावों के अनुसार इजराइल ने तेहरान में मौजूद रक्षा मंत्रालय को निशाना बनाया तथा बुशहर में आयल डिपो और गैस रिफाइनरी समेत 140 से अधिक ठिकानों पर मिसाइलें गिराईं। इन दो दिनों के युद्ध में अभी तक कुल 138 ईरानी मारे जा चुके हैं, जिनमें 9 nuclear साइंटिस्ट और 20 से अधिक कमांडर शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर, ईरान ने दावा किया है कि उसने इजराइल के 3 विमान F-35 को मार गिराया है और जवाबी कार्यवाही में तेल अवीव के कई रिहायशी इमारतों को निशाना बनाकर 150 से ज्यादा मिसाइलें दागीं, जहाँ 13 लोग मारे गए तथा 300 से अधिक घायल हुए हैं। जिसे ईरान ने ऑपरेशन “टू प्रॉमिस थ्री” (TO PROMISE THREE) नाम दिया। ईरान ने राजधानी समेत अन्य राज्यों में एयर डिफेंस सिस्टम एक्टिवेट कर दिया है।
क्या कारण बना कि इसराइल ने पूर्व आक्रमण की नीति अपनाई?
इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बयान में कहा कि यह युद्ध हमारे अस्तित्व का युद्ध है और इस हमले का नाम उन्होंने ऑपरेशन राइजिंग लाइन रखा।
बेंजामिन नेतन्याहू के अनुसार यह हमला आवश्यक है क्योंकि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बहुत करीब है और इसे नहीं रोका गया तो यह हमारे और दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा है। इसराइल के अनुसार ईरान ने काफी मात्रा में यूरेनियम जमा कर रखा है और जब तक ईरान सुरक्षा से अपना परमाणु कार्यक्रम समाप्त नहीं कर देता तब तक युद्ध जारी रहेगा।
ईरान के पास पांच बड़े न्यूक्लियर प्लांट हैं—जो फोरदो, खोनडब, नतांज, इस्फहान और बुशहेर हैं।
कौन है कितना शक्तिशाली?
सैन्य शक्ति: ईरान के पास 61 लाख एक्टिव सेना है, 350000 रिज़र्व सेना है, और 220000 अर्ध सैनिक बल है। वहीं दूसरी ओर, इसराइल के पास 170000 एक्टिव सेना है, 4 लाख 65000 रिज़र्व सेना है, और 35000 अर्ध सैनिक बल है। टैंक में ईरान के पास 1996 टैंक हैं और इजरायल के पास 1370 टैंक हैं।
हवाई ताकत इजराइल के पास 612 विमान हैं, 241 फाइटर जेट और 140 हेलीकॉप्टर, 48 अटैक हेलीकॉप्टर हैं। वहीं दूसरी ओर, ईरान के पास 551 विमान हैं, 186 फाइटर जेट हैं, 129 हेलीकॉप्टर हैं, और 13 अटैक हेलीकॉप्टर हैं। ईरान के पास कुछ घातक मिसाइलें भी हैं, जैसे कि जिम फतेह 110, साहब 3, जोल्फगर, और खुर्रम शहर जैसी मिसाइलें। इनका उपयोग हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी मिसाइल में हो रहा है। उनकी क्षमता 2000 किलोमीटर तक की दूरी मार गिराने ने में कर सकते हैं। इजराइल के पास अमेरिका से मिले हुए घातक लड़ाकू विमान F-35 और F-16 शामिल हैं।
क्या हुआ कि इजराइल और ईरान की विश्व विख्यात दोस्ती बदल गई दुश्मनी में?
1948 में तुर्की के बाद ईरान ही ऐसा मुस्लिम देश था जिसने इजराइल को नए राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। उस समय दोनों देशों के मध्य कोई संघर्ष नहीं था। नए राष्ट्र के रूप में जन्मे इजराइल पर अरब देशों ने तेल पर प्रतिबंध लगा दिया, जहां इसराइल ने 35% से अधिक तेल ईरान से हासिल किया और उसके बदले हथियार, तकनीकी, कृषि से जुड़ी चीजों का व्यापार शुरू किया तथा इराक से हुए ईरान युद्ध में ईरान की बढ़-चढ़कर सहायता की।
कैसे आई रिश्तों में कड़वाहट?
1979 में ईरान एक अयातुल्लाह खोमेंनई शासन में कट्टर इस्लामी गणराज्य देश में तब्दील हो गया। इसके साथ-साथ की सत्ता का अंत हो गया और उन्हें ईरान छोड़कर भागना पड़ा, और ईरान में इस्लामी शरिया कानून पर आधारित शासन प्रणाली आ गई, और इसी के चलते ईरान ने इजरायल के अस्तित्व को नकार कर इस्लाम और ईरान के लिए खतरा बताया और इजरायल के दुश्मन देश फिलीस्तीन लड़ाकू के समर्थन में आ गया।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अमेरिका और इजराइल दोनों ही पसंद नहीं करते थे, और इजराइल ने इसका विरोध अंतरराष्ट्रीय मंच से शुरू कर दिया। इसके साथ ही दोनों देशों में तनाव और बढ़ गया, और तनाव इतना बड़ा कि युद्ध की स्थिति बन गई।
इजराइल-ईरानी युद्ध पर दो भागों में बटी दुनिया में जहां एक ओर अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूके जैसे देश खुलकर इजरायल के समर्थन में हैं, वहीं दूसरी ओर देखें तो चीन, यमन, इराक और पाकिस्तान विरोधी हैं। भारत की बात करें तो भारत ने SCO शंघाई सहयोग संगठन की चर्चा में भाग नहीं लिया और भारत ने दोनों देशों के मध्य बातचीत और कूटनीति से तनाव को कम करने का आग्रह किया।
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