---Advertisement---

Iran Israel War: ईरान ने अमेरिकी बेस पर मिसाइल अटैक किया

Missile strike on US military base
---Advertisement---

Iran Israel War में मध्य पूर्व में स्थिति इतनी तेजी से बदल रही है कि यह कहना मुश्किल हो रहा है कि यह युद्ध रुकने की स्थिति में है या फिर इसकी चिंगारी संपूर्ण विश्व में फैल सकती है। एक ओर इज़राइल ने हमास पर लंबे समय तक युद्ध छेड़ा, वहीं इज़राइल ईरान के खिलाफ युद्धविराम के लिए कैसे तैयार हो गया, यह सोचने वाली बात है। दूसरी ओर अमेरिका ने जहां दो हफ्ते का समय मांगा था कि ईरान और इज़राइल के बीच की स्थिति को कूटनीतिक तरीकों से सुलझा लिया जाएगा, वहीं अमेरिका ने सिर्फ दो दिन के भीतर ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटी पर हमला करके उसे नष्ट कर दिया। क्या अमेरिका कुछ बड़ा प्लान कर रहा है?

इसका बदला लेने के लिए ईरान ने अचानक अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर मिसाइल हमलों की एक बड़ी श्रृंखला शुरू कर दी है। यह हमला उस अमेरिकी ऑपरेशन “मिडनाइट हैमर” की प्रतिक्रिया में किया गया है, जिसमें अमेरिका ने बी-2 बॉम्बर्स की मदद से ईरान की न्यूक्लियर साइट्स को निशाना बनाया था। ईरान के जवाबी हमले को “ऑपरेशन बशारत अल-फत” नाम दिया गया है और यह हमला सिर्फ एक या दो ठिकानों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि चार से अधिक देशों में मौजूद अमेरिकी बेसों को निशाना बना रहा है।

सोचने वाली बात यह है कि जब ईरान ने क़तर में स्थित अमेरिका के Al Udeid Air Base पर मिसाइल से हमला करने से पहले क़तर को सूचित कर दिया था, तो उसने ऐसा क्यों किया?

 

क़तर पर मिसाइल हमले

ईरान ने क़तर, कुवैत, इराक और बहरीन में मौजूद अमेरिकी सैन्य अड्डों को मिसाइलों से निशाना बनाया। हालांकि सऊदी अरब के अड्डों पर हमला हुआ या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन क़तर ने सबसे पहले प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उसकी संप्रभुता का उल्लंघन हुआ है और वह ईरान को इसका जवाब देगा। वहीं, अमेरिका के मिसाइल डिफेंस सिस्टम्स कई ईरानी मिसाइलों को रास्ते में ही इंटरसेप्ट करने में सफल रहे हैं।

यह सोचने की बात है कि जब अमेरिका ने ईरान की परमाणु फैसिलिटी पर हमला किया था तो क्या ईरान को पहले से इसकी जानकारी दी गई थी? स्वाभाविक रूप से नहीं, क्योंकि अगर अमेरिका पहले ही ईरान को यह जानकारी दे देता कि हम आपके ऊपर हमला करने आ रहे हैं, तो क्या अमेरिका सुरक्षित तरीके से हमला कर पाता?तो फिर ईरान ने क़तर को पहले से यह सूचना क्यों दी कि हम आपके देश में स्थित अमेरिकी Al Udeid Air Base पर मिसाइल से हमला करने जा रहे हैं? कहीं न कहीं ईरान भी यह समझता है कि अगर गलती से किसी भी अमेरिकी सैनिक को नुकसान होता है या कोई कैजुअल्टी होती है, तो अमेरिका एक बड़े स्तर की कार्रवाई कर सकता है और ईरान और अमेरिका के बीच सीधा युद्ध शुरू हो सकता है। अमेरिका अपनी सैन्य शक्ति से ईरान को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

इसलिए परोक्ष रूप से ईरान ने क़तर के माध्यम से अमेरिका को एक तरह से सूचित किया था कि हम आपके ऊपर हमला करने वाले हैं, आप इन मिसाइलों को हवा में ही इंटरसेप्ट करके नष्ट कर देना, क्योंकि ईरान को अपने लोगों के बीच यह भी संदेश देना था कि अमेरिका ने हमारे ऊपर हमला किया और बदले में हमने भी कार्रवाई की।

 

नाटो का सक्रिय होना संभव

अगर ईरान द्वारा किए गए इन मिसाइल हमलों में अमेरिकी सैनिकों की मौत होती है और यह बात सार्वजनिक रूप से सामने आती है, तो यह संपूर्ण नाटो को सक्रिय कर सकता है। नाटो सदस्य देश अनुच्छेद 5 के तहत एकजुट होकर ईरान के खिलाफ बड़े स्तर की निर्णायक सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं। यूके पहले ही कह चुका है कि वह अमेरिका का समर्थन करता है, लेकिन हर तरीके से नहीं। हालांकि हमले का तरीका वह उचित नहीं मानता।

 

ईरान की मिसाइल क्षमताएं सीमित

ईरान के पास वर्तमान में कोई भी ऐसी लंबी दूरी की मिसाइल नहीं है जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक हमला कर सके। फिलहाल उसके पास ऐसी मिसाइलें नहीं हैं जिनसे वह मुख्यभूमि अमेरिका पर हमला कर सके।उसकी सबसे शक्तिशाली मिसाइल की रेंज केवल लगभग 2000 किमी है, जो केवल इज़राइल या खाड़ी क्षेत्र में मौजूद अमेरिकी जहाजों को ही नुकसान पहुंचा सकती है।ईरान ने क़तर में स्थित अमेरिकी एयरबेस को निशाना बनाया। अगर वह चाहता तो खाड़ी में स्थित अमेरिकी जहाजों को भी निशाना बना सकता था, और वह आसान भी था। इसके बावजूद उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह केवल यह दिखाना चाहता था कि हम भी हमला कर सकते हैं। इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) की कमी के कारण ईरान सीधे अमेरिका पर हमला नहीं कर सकता, इसलिए उसने क्षेत्रीय अमेरिकी सैन्य अड्डों को निशाना बनाया है जो उसके आस-पास स्थित हैं।

 

स्लीपर सेल का खतरा

ईरान की सीधी हमले की क्षमता सीमित है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वह अमेरिका में मौजूद संभावित स्लीपर सेल्स को सक्रिय कर आतंकवादी हमलों का सहारा ले सकता है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

 

मध्य पूर्व में यू.एस. सेंट्रल कमांड

अमेरिका ने पूरे विश्व को अलग-अलग कमांड में बाँट रखा है। यह मध्य पूर्व वाला क्षेत्र U.S. Central Command (USCENTCOM) के अंतर्गत आता है। इसका मुख्य उद्देश्य मध्य पूर्व में शांति, स्थिरता और निगरानी बनाए रखना है। मध्य पूर्व में अमेरिका के आठ से नौ प्रमुख सैन्य अड्डे हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के बेस शामिल हैं –एयरबेस, आर्मी बेस और नेवल बेस। इसके अलावा सैकड़ों छोटे सैन्य कैंप भी हैं, जहां दो से तीन हजार सैनिक तैनात हैं। अमेरिका ने इन सबमें व्यापक तैयारी कर रखी है और किसी भी समय बड़े स्तर पर जवाबी हमला कर सकता है।

मध्य पूर्व में अमेरिका का सबसे बड़ा एयरबेस Al Udeid है। इस एयरबेस में एक समय में 10,000 से अधिक अमेरिकी सैनिक और लगभग 100 से ज्यादा विमान हमेशा मौजूद रहते हैं।

 

भारत के लिए बढ़ता खतरा

ईरान के इस हमले का प्रभाव भारत तक भी पहुंच सकता है। खाड़ी देशों में लाखों भारतीय काम कर रहे हैं – विशेष रूप से सऊदी अरब, क़तर और यूएई में।अगर मिसाइल हमलों के कारण कोई मलबा आम नागरिक इलाकों में गिरता है, तो भारतीय नागरिक भी खतरे में पड़ सकते हैं। इसके अलावा स्ट्रेट ऑफ हॉरमुज को लेकर जो तनाव है, वह भी चिंता का विषय है, क्योंकि अगर ईरान द्वारा इसे ब्लॉक किया गया तो वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं और इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत को होगा। इसलिए इसे लेकर भारत और चीन दोनों चिंतित हैं, क्योंकि यह तेल आपूर्ति का प्रमुख रास्ता है।

ईरान और अमेरिका के बीच यह टकराव केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि एक बड़ा भू-राजनीतिक संकट बन चुका है।इसमें विचारणीय बात यह है कि अमेरिका के द्वारा युद्धविराम करवाए जाने के बाद भी दोनों देश एक-दूसरे पर मिसाइल हमले कर रहे हैं। अगर यह युद्ध शांत नहीं हुआ और अमेरिकी प्रतिक्रिया तेज होती है, तो पूरा मध्य पूर्व युद्ध की आग में झुलस सकता है।और इस संकट का प्रभाव केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा; इसका असर वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और प्रवासी नागरिकों की सुरक्षा पर भी पड़ेगा।

Join WhatsApp

Join Now
---Advertisement---

Leave a Comment