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Operation Sindoor: क्या राजनीतिक रोक ने भारत की रणनीति को कमजोर किया?

Operation Sindoor Ai Generated
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भारत की रक्षा रणनीति और सैन्य पराक्रम का प्रतीक बन चुका ऑपरेशन सिंदूर एक बार फिर चर्चा में है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हुए एक सेमिनार में भारतीय नौसेना के अधिकारी और डिफेंस अटैची कैप्टन शिवकुमार के बयान ने इस ऑपरेशन के शुरुआती चरणों में भारतीय वायुसेना को मिली निर्देशात्मक सीमाओं पर एक सवाल खड़ा कर दिया है। यह बात तब और सोचने वाली हो जाती है जब इसे सीडीएस जनरल अनिल चौहान के इंटरव्यू से जोड़ा जाता है, जिसमें उन्होंने शुरुआत में हुए नुकसान को स्वीकारने की बात कही थी, लेकिन नुकसान का कारण स्पष्ट रूप से नहीं बताया था। इस घटनाक्रम ने पूरे सैन्य ऑपरेशन की दिशा, सामरिक रणनीति और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका पर एक गंभीर सवाल छोड़ दिया है।

 

शुरुआती रणनीतिक चूक:

ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम की घटना के बाद शुरू हुआ एक ऐसा सैन्य अभियान था जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर नौ आतंकवादी ठिकानों को मिट्टी में मिला दिया। लेकिन इस हमले से पूर्व प्रधानमंत्री आवास पर चली उच्चस्तरीय बैठकों में यह निर्णय लिया गया था कि सेना को “खुली छूट” दी जाएगी। सीडीएस, तीनों सेना अध्यक्ष, रक्षामंत्री, विदेश मंत्री और एनएसए इन बैठकों में शामिल थे। बावजूद इसके, भारतीय वायुसेना के युद्धक विमानों को ऑपरेशन के शुरुआती चरण में पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों और एयर डिफेंस सिस्टम को टारगेट करने की अनुमति नहीं थी।

कैप्टन शिवकुमार के अनुसार, “राजनीतिक नेतृत्व से निर्देश था कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठानों और वायु रक्षा प्रणाली पर हमला न किया जाए। इसी कारण हमने कुछ नुकसान का सामना किया।”

यह बयान बताता है कि वायुसेना की सामरिक क्षमता पर राजनीतिक निर्देशों ने कहीं ना कहीं कोई प्रत्यक्ष प्रभाव डाला और इससे प्रारंभिक झटका भारत को झेलना पड़ा।

 

रणनीति में बदलाव और निर्णायक आक्रमण:

कैप्टन शिवकुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि नुकसान के बाद भारत ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। पहले दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को नष्ट किया गया, फिर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों और ब्रह्मोस जैसी सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुए बड़े पैमाने पर हमला किया गया। इससे यह साबित होता है कि भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता शुरू से मौजूद थी, लेकिन राजनीतिक नियंत्रण ने उसे शुरुआती दौर में बाधित किया।

CDS Anil Chauhan ने भी अपने इंटरव्यू में यह कहा था कि शुरुआती नुकसान के बाद “हमने अपनी रणनीति ठीक की और सफलतापूर्वक लक्ष्य साधे।” उन्होंने यह भी माना कि सबसे अहम बात यह नहीं थी कि विमान गिरे, बल्कि यह था कि वे क्यों गिरे और उसके बाद हमने क्या किया।

 

क्या था ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य?

इंडोनेशिया स्थित भारतीय दूतावास की सफाई में कहा गया कि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य सिर्फ आतंकवादी ढांचे को निशाना बनाना था, न कि पाकिस्तान की संप्रभुता पर हमला करना। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस बात को दोहराया कि भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि हमला केवल आतंकवादी ठिकानों पर होगा।


लेकिन सवाल यह है कि अगर उद्देश्य सिर्फ आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना था, तो फिर क्यों चार दिनों तक युद्ध जैसी स्थिति बनी रही? क्यों सीमा क्षेत्रों में लगातार ब्लैकआउट और मिसाइल गतिविधियां दर्ज की गईं?

 

टारगेट किए गए ठिकानों की भौगोलिक स्थिति:

भारतीय वायुसेना द्वारा निशाने पर लिए गए नौ ठिकानों में से कई पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर से बाहर थे। जैश-ए-मोहम्मद के चार ठिकाने बहावलपुर, तेहर कला, कोठली और मुजफ्फराबाद में थे। लश्कर-ए-तैयबा के तीन ठिकाने मुरीदके (लाहौर के पास), बरनाला और मुजफ्फराबाद में थे। हिजबुल मुजाहिदीन के दो ठिकाने सियालकोट और कोठली में थे।

यानी भारत ने पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों में स्थित आतंकवादी अड्डों को निशाना बनाया था, जो पाक अधिकृत कश्मीर तक सीमित नहीं थे।

 

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और परमाणु युद्ध की चेतावनी:

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुले तौर पर चेतावनी दी थी कि अगर युद्ध की स्थिति नहीं रुकी तो परमाणु युद्ध हो सकता है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति, विदेश मंत्री और तमाम अंतरराष्ट्रीय नेता भारत-पाकिस्तान के संपर्क में आए।

इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट होता है कि ऑपरेशन सिंदूर एक सीमित कार्रवाई से कहीं अधिक था, यह एक पूर्ण सैन्य टकराव की स्थिति में परिवर्तित हो गया था।

 

क्या राजनीतिक निर्देश बने रणनीतिक बाधा?

बड़ा सवाल यही है कि क्या राजनीतिक नेतृत्व द्वारा “केवल आतंकवादी ठिकानों” तक कार्रवाई सीमित रखने का निर्देश देना एक रणनीतिक भूल थी? अगर वायुसेना को शुरुआत से ही पूर्ण स्वतंत्रता मिली होती, तो शायद पाकिस्तान को अपना एयर डिफेंस बचाने का मौका ही न मिलता।

विपक्ष लगातार इस बात को लेकर सवाल उठा रहा है कि संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं बुलाया गया? सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाई गई? अगर पूरा देश सरकार के साथ खड़ा था तो इस सूचना को साझा क्यों नहीं किया गया? क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अवहेलन नहीं थी?

 

सेना की रणनीति और राजनीतिक हस्तक्षेप:

यह मुद्दा इस कारण भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में जिस तरह सेना की रणनीति को राजनीतिक नेतृत्व ने बाधित किया, उससे यह संदेश भी जाता है कि युद्ध के समय भी सैन्य विशेषज्ञों को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दी जाती।

क्या भविष्य में भी भारतीय सेना अपनी रणनीति स्वायत्त रूप से बना सकेगी या राजनीतिक एजेंडे के अनुसार संचालित होती रहेगी?

पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि ऑपरेशन सिंदूर एक सीमित सैन्य कार्रवाई से अधिक था। इसका प्रभाव, दायरा और नतीजे व्यापक रहे। भारतीय वायुसेना की असाधारण क्षमता को कोई रोक नहीं सकता है, लेकिन उसकी प्रारंभिक रणनीतिक असफलता और नुकसान राजनीतिक निर्देशों की वजह से हुए—यह बात अब डिफेंस अटैची और सीडीएस दोनों के बयानों से सामने आई है।

अगर वास्तव में भारतीय वायुसेना को पहले दिन से ही पूरी छूट दी गई होती, तो पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था शायद एक ही दिन में समाप्त हो जाती। लेकिन आज इस पर विश्लेषण हो रहा है—क्योंकि शायद रणनीति से अधिक राजनीति भारी पड़ गई।

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